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राजनीति पर धर्म का राज जरूरी : पुष्पदंत सागर

भिण्ड। जैन संत वात्सल्य दिवाकर गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर महाराज ने शनिवार को सत्संग के आरंभ में समाज, देश व संस्कृति के पतन और विकास का कारण बताते हुए कहा कि आज जरूरत है राजनीति पर धर्म के राज की, पहले के समय में भी एक राजगुरु हुआ करता था, जिसके आशीर्वाद व मार्गदर्शन से राजा प्रजा के हित के राष्ट्र की सुरक्षा को पूर्ण निपुड़ता से सम्हाला करता था। आज पुन: उसी क्रम की आवश्यकता है। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि या सरकार को उनकी मौलिक आवश्यकता या परेशानी पर पूर्ण ध्यान देना चाहिए और राज धर्म निज धर्म के अनुसरण करके अपने सेवा धर्म को निभाना चाहिए। याद रखना राजनीति में धर्म रहेगा तो राजनीति और समाज राष्ट्र का विकास होगा और वही राजनीति धर्म में प्रवेश करेगी तो दोनों का ह्रास व विनाश होगा। राजनीति में धर्म आवश्यक पर पर धर्म में राजनीति कतई आवश्यक नहीं।
गाणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर महाराज ने कहा कि जो नीति से चलवा वही नेता है, जिस प्रकार दूध अगर सही हांथ में पहुंच जाए तो स्वादिष्ट मिष्ठान बन जाता है और गलत हांथ लग जाए तो दही भी नहीं बन पाता है। ठीक उसी प्रकार समाज, शहर, प्रदेश व देश अगर सही व्यक्ति, सही शासक, सही नेता के हांथ में पहुंच जाता है तो देश व संस्कृति का विकास संभव है। उन्होंने सत्संग के अंतर्गत भगवान महावीर के जीवन समय कि बात बताते हुए कहा कि एक नारी चंदनवाला जो कर्मों की सताई थी, पर धर्म की शरण, महावीर की शरण जब प्राप्त हुई तो उसका उद्धार हो गया, ठीक उसी प्रकार समाज व सत्ता अगर धर्म से जुड़ी रहती है तो उसका उद्धार हो जाता है। इसलिए जीवन की सफलता के लिए वर्तमान में जीना सीखो, अतीत और भविष्य सिर्फ बातें हैं, वर्तमान सही जिया तो सब सही रहेगा। उन्होंने कहा कि संकट, गरीबी, बीमारी भाग्य पर निर्भर करते हैं और इन सब पर विजय पाने का रास्ता सिर्फ धर्म की शरण है, इसलिए शरीर की सुंदरता नहीं संस्कार और आत्मा की पवित्रा महत्वपूर्ण है और जीवन में आनंद चाहिए तो दूसरों में लख बुराई होने पर भी अच्छाई ही देखो, तुम्हारा नजरिया ही तुम्हारे सुखद जीवन का जरिया है।
उन्होंने कहा कि परेशान या रोगी को देखकर घृणा मत कीजिए, उसे देखकर घृणा आती है तो यह इंसानियत नहीं है। क्योंकि हमारी संस्कृति घृणा की नहीं सेवा, दया, परोपकार, सत्य व अहिंसा की है। सिर्फ पानी को बस छानकर मत पियो वाणी भी छानकर बोलो, सम्हल कर समझकर और सजगता के साथ अपनी पुण्य सरस्वती का उपयोग करो, ऐसे शब्द निकालो जिससे सामने वाले के हृदय में स्थान बन जाए, ना की रिक्त स्थान। तुम्हारे द्वारा किसी का दिल ना दुखे जिससे परिणाम यह होगा कि तुम्हें स्वयं के अपमान का सामना नहीं करना पड़ेगा, प्रेम बिना मेहनत के सम्मान दिलाता है, अपना जीवन घृणा की जगह प्रेम से जिओ, क्योंकि महत्वपूर्ण यह नहीं कि आपने कितना जोड़ा, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आपने क्या जोड़ा।
सत्संग में समाजजन के साथ स्थानीय विधायक संजीव सिंह कुशवाह संजू एवं शिकोहाबाद, दिल्ली, सूरत से भी भक्तगण आए, जिन्होंने प्रारंभ की पूजा आदि धार्मिक क्रियाएं संपादित कीं।

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