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जन समुदाय को शीतलहर (शीतघात) के प्रकोप से बचाव हेतु एडवायजरी जारी, शीत-घात के प्रभाव से बचने के लिये बरते सावधानियां।

जन समुदाय को शीतलहर (शीतघात)सर्दी के मौसम में जब ठंडी हवाएं तेजी से चलने लगती हैं, तापमान में तेजी से गिरावट होने लगती है, तब इस स्थिति को शीतलहर कहते हैं, आसान शब्दों में कहा जा सकता है कि सर्दी के मौसम में जब न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से लेकर 4-5 डिग्री नीचे चला जाता है तो इसे शीतलहर कहा जाता है। शीत से होने वाले रोग के लक्षणों के उत्पन्न होने पर तत्काल स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों या डॉक्टर से परामर्श करें।

शीत-घात के दौरान व्यक्तिगत अथवा घरेलु स्तर पर।

शीत-घात के प्रभाव से बचने के लिये यथासंभव घर के अंदर रहें और ठंडी हवा, बारिश से संपर्क को रोकने के लिये अनिवार्य होने पर ही यात्रा करें, शरीर को सूखा रखें, शरीर की गरमाहाट बनाये रखने हेतु अपने सिर, गर्दन, कान, नाक, हाथ और पैर की उंगलीयों को पर्याप्त रूप से ढकें, एक परत वाले कपडे की जगह ढीली फिटिंग वाले परतदार हल्के कपडे, हवा रोधीध्सूती का बाहरी आवरण तथा गर्म ऊनी भीतरी कपडे पहनें, तंग कपडे शरीर में रक्त के बहाव को रोकते हैं इन कपड़ों का प्रयोग न करें, शरीर की गर्मी बचाये रखने के लिए टोपीध्हैट, मफलर तथा आवरण युक्त एवं जल रोधी जूतों का प्रयोग करें, सिर को ढकें क्योंकि सिर के उपरी सतह से शरीर की गर्मी की हानि होती है, यथासंभव बिना उँगली वाले दस्ताने का प्रयोग करें, यह दस्ताने उँगलियों की गरमाहट बचाये रखने में मदद करते हैं, फेफड़ों में संक्रमण से बचाव हेतु मुँह तथा नाक ढंककर रखें, स्वास्थ्य वर्धक गर्म भोजन का सेवन किया जाना सुनिश्चित करें एवं शीत प्रकृति के भोजन से दूर रहें, रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हेतु विटामिन सी से भरपूर ताजे फल और सब्जियां खाएं, गर्म तरल पदार्थ नियमित रूप से पीएं, इससे ठंड से लडने के लिए शरीर की गर्मी बनी रहेगी, तेल, पेट्रोलियम जेली या बॉडी कीम से नियमित रूप से अपनी त्वचा को मॉइस्चराईज करें, बुजुर्ग, नवजात शिशुओं तथा बच्चों का यथासंभव अधिक ध्यान रखें क्योंकि उन्हें शीत ऋतु का प्रभाव होने की आशंका अधिक रहती हैं, उनके द्वारा टोपी, मफलर, मौजे, स्वेटर इत्यादि का उपयोग किया जाना सुनिश्चित किया जाये, आवश्यकता अनुसार रूम हीटर का उपयोग करें एवं रूम हीटर के प्रयोग के दौरान पर्याप्त हवा निकासी का प्रबंध रखें, कमरों को गर्म करने के लिये कोयले का प्रयोग न करें। अगर कोयले तथा लकड़ी को जलाना आवश्यक है तो उचित चिमनी का प्रयोग करें, बंद कमरों में कोयले को जलाना खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह कार्बन मोनोऑक्साईड जैसी जहरीली गैस पैदा करती है जो किसी की जान भी ले सकती है, अधिक समय तक ठंड के संपर्क में न रहें, शीत लहर के अत्यधिक प्रभाव से त्वचा पीली, सख्त एवं संवेदनशून्य हो सकती है, तथा लाल फफोले पड़ सकते हैं यह एक गंभीर स्थिति होती है जिसे गैंगरीन भी कहा जाता है यह अपरिवर्तनीय होती
है। अतः शीत लहर के पहले लक्षण पर ही तत्काल चिकित्सक की सलाह लें। प्रभावित अंगों को तत्काल गर्म करने का प्रयास किया जाये। अत्याधिक कम तापमान वाले स्थानों पर जाने से यथासंभव बचा जाए अन्यथा शरीर के कोमल अंगों में शीतदंश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। शीत से प्रभावित अंगों को गुनगुने पानी (गर्म पानी नहीं) से इलाज करें। इसका तापमान इतना रखें कि यह शरीर के अन्य हिस्से के लिये आरामदायक हो। कंपकंपी, बोलने में दिक्कत, अनिंद्रा, मांसपेशियों के अकडन, सांस लेने में दिक्कत/निश्चेतना की अवस्था हो सकती है। हाईपोथर्मिया एक खतरनाक अवस्था है जिसमें तत्काल चिकित्सीय सहायता की आवश्यकता है। शीत लहर/हाईपोथर्मिया से प्रभावित व्यक्ति को तत्काल चिकित्सीय सहायता प्रदान कराएं।
*शीतलहर की गंभीरता को देखते हुए नोडल अधिकारी नियुक्त*
कलेक्टर भिण्ड संजीव श्रीवास्तव ने जिले में न्यूनतम तापमान की संभावना व शीत लहर के प्रकोप को गंभीरता से लेते हुए इससे होने वाले क्षति को कम करने हेतु आपदा प्रबंधन एवं नागरिक सुरक्षा विभाग के निर्देशानुसार जिला स्तर पर, अनुविभाग स्तर पर एवं विभाग स्तर पर अधिकारियों को नोडल अधिकारी नियुक्त कर उन्हें आवश्यक अपने-अपने क्षेत्र में आमजन को शीतलहर से बचाने के उपाय सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने समग्र रूप से जिले के नोडल अधिकारी के रूप में एडीएम श्री एल.के. पाण्डेय, अनुविभाग स्तर पर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व), विभाग स्तर पर विभाग के जिला प्रमुख को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। नियुक्त नोडल अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र के अधीन शीत लहर से बचाव के उपाय सुनिश्चित करेंगे।

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