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अगर मन्दिर में धर्म होता तो जानवर भी धर्मात्मा होता : विनिश्चय सागर

भिण्ड। आचार्य विनिश्चय सागर महामुनिराज ने शनिवार को ऋषभ सत्संग भवन भिण्ड में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आप अपने जीवन में धर्म की क्रियाएं करते हैं इसलिए कि आप धर्मात्मा हो जाएं। सादगी और विनम्रता आप में आए। आपका सोच ये रहता है कि धर्म करते हुए इसके बदले में मुझे शांति मिले, सुख मिले, मैं खुश रहूं, दुख मेरे को छू भी न सके।
उन्होंने कहा कि धर्म सुख देता है ये बिल्कुल सत्य है, परंतु एक बात जो आप समझ नहीं पाए कि धर्म मिलता कहां है? आप उसको मन्दिरों में ढूंढते हो, शास्त्रों में ढूंढते हो, गुरुओं में ढूंढते हो, धर्म के अनुष्ठानों में, क्रियाओं में ढूंढते हो, लेकिन ये सब गलत पते पर दस्तक दे रहे हो। एक बात ध्यान रखना ये सब चीजें धर्म तक पहुंचाने का माध्यम है, क्योंकि धर्म तो केवल आपके मन से शुरू होता है। अगर मन्दिर में धर्म होता तो मन्दिर में कभी-कभी प्रवेश कर जाने वाला जानवर भी धर्मात्मा होता, शास्त्रों में होने वाले जीव व वर्तमान का वो हादसा जिसमें उस मुनि की हत्या करने वाला वो जीव ये सब भी धर्मात्मा होते, पर ऐसा नहीं। क्योंकि अगर हृदय में धर्म नहीं है तो मन्दिर, शास्त्र, गुरू कुछ नहीं कर सकते। ये सब तो निमित्त हैं कि आप अपने अन्दर तक पहुंचें और उस धर्म की खेाज करें जो वास्तव में धर्म है और सुख को देने वाला है।

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