11वीं सदी का प्राचीन रेहकोला रणकौशला मां का रहस्यमय मंदिर।आल्हा ऊदल के भाई मलखान ने कराई थी स्थापना।

11वीं सदी का प्राचीन रेहकोला रणकौशला मां का रहस्यमय मंदिर।आल्हा ऊदल के भाई मलखान ने कराई थी स्थापना।
आज भी मंदिर खुलने से पहले मलखान कर जाता है पूजा।
पाकिस्तान के हिगंलाज से मां को लेकर आया था मलखान।
भिंड जिला मुख्यालय से करीब 82 किलोमीटर की दूरी दबोह कस्बे के नजदीक अमाहा गांव में विराजी मां रेहकोला देवी अर्थात रणकौशला देवी का मंदिर है जो 11 वीं सदी का बताया जाता है।
*रेहकोला या रणकौशला देवी की पाकिस्तान में विराजी हिंगलाज देवी से जुड़ी है कहानी!* ऐसी मान्यता है कि आदिशक्ति शक्तिपीठों में से एक पाकिस्तान में विराजी हिंगलाज देवी हैं बताया जाता है कि जब राजा दक्ष के यहां माता सती हुई थी तब शंकर भगवान दुखी होकर उनके शरीर को हाथों में लिए पूरे ब्रह्मांड में घूम रहे थे और माता सती के अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे और उन्हीं स्थानों पर मां जगदम्बा के आदिशक्ति शक्तिपीठ बने हैं।
इन्ही शक्ति पीठों में एक पाकिस्तान की हिंगलाज माता हैं वहां ऐसी मान्यता है कि जो मां के दर्शन के लिए जाता है पहले कुंड में फूल और नारियल अर्पित करना पड़ता है और जिस भक्त का फूल नारियल जल के ऊपर आ जाता है उन्ही भक्तों को मां दर्शन देती हैं, वीर मलखान की मां तिलका देवी भी हिंगलाज माता के दर्शन करना चाहतीं थी लेकिन जैसे ही मलखान की मां तिलका देवी ने दर्शन से पहले कुंड में फूल नारियल अर्पित किए तो वह ऊपर नहीं आए और मलखान के द्वारा अर्पित फूल नारियल कुण्ड में चढ़ायें जाने के बाद ऊपर आ गये तभी मलखान को हिंगलाज मां ने साक्षात प्रकट होकर दर्शन दिए तब वीर मलखान ने हिंगलाज मां को अपने साथ सिरसा गढ़ चलने का आग्रह किया तो हिंगलाज मां ने एक शर्त रखी कि मैं तुम्हारे साथ तो चलूंगी मगर तुम्हारे कंधे पर विराजमान होकर और तुम मुझे जिस स्थान पर बैठा देगो मैं वही विराजमान हो जांऊगी, और मलखान अपनी माता तिलका देवी के साथ हिंगलाज मां को लेकर सिरसा गढ़ से पहले महज 6 किलोमीटर की दुरी पर पहुंची ही था तभी वीर मलखान के गुरु गोरखनाथ आ गए उन्होंने मलखान से मां के दर्शन का आग्रह किया तभी मलखान ने जैसे ही मां को उतारा तो वह उसी जगह विराजमान हो गयी और आज वो जगह अमाहा नाम से जानी जाती है, इसके बाद मलखान ने अपनी पत्नी गजमोतिन के साथ मां की स्थापना कराई दी जिन्हें लोग रेहकोला एवं रणकौशला के नाम से पुकारने लगे और ऐसी मान्यता है कि जो भी लोग मां के दर्शन के लिए जाते है मां उनकी हर मनोकामना पूर्ण करती है,हर सोमवार एवं चैत्र और शारदीय नवरात्रि में भक्तों का तांता लगा रहता है विशाल मेले का भी आयोजन होता है।
*रेहकोला देवी का कैसे रणकौशला नाम पड़ा!* बताते हैं कि वीर मलखान जब भी किसी युद्ध के लिए रणभूमि में जातें थे तो वह मां का आशीर्वाद लेकर जाते थे और वीर मलखान को हर रण में सदैव विजय प्राप्त होती थी, और ऐसा बताते हैं की इसी वजह से राजा प्रृथ्वीराज चौहान को भी वीर मलखान से युद्ध में शिखस्त खानी पड़ी थी। मलखान को हर युद्ध के रण में विजय मिलने पर मलखान देवी को रणकौशला के नाम से पुकारने लगे तब से लोग मां को रणकौशला कहकर भी पुकारने लगे।
*मंदिर में बावड़ी से 4 किलोमीटर की दूरी पर सुरंग से रास्ता था सिरसागढ़ का!* अमाहा गांव में स्थित मां रेहकोला रणकौशला मंदिर के पूर्व दिशा में 4 किलोमीटर की दूरी पर पंहुज नदी के किनारे सिरसा रियासत की प्राचीन ग़ढियों के अवशेष मिले हैं जिसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर दिए है, और मां रेहकोला (रणकौशला) देवी मंदिर पर एक बाबडी है जिसमें माना जाता है कि यह एक अदृश्य भूमिगत सुरंग है। जिसका एक द्वार मॉं रणकौशला मंदिर की ओर तथा दुसरा द्वार सिरसा रियासत की गढ़ी के महल में खुलता है और यही से एक अदृश्य गुप्त सुंरग है जिसमें से होकर नियमित वीर मलखान पत्नी गजमोतिन के साथ ब्रह्ममुहूर्त में माता रणकौशला देवी के दर्शन करने के लिए आते जातें थे।
*रहस्यमयी मंदिर खुलने से पहले ही कौन कर जाता है पूजा!* मां रेहकोला (रणकौशला) मंदिर से जुड़ी ऐसी मान्यता भी है कि वीर मलखान आज भी बह्ममहुर्त में देवी की पूजा अर्चना के लिए सबसे पहले आता है, यही कारण है यहाँ पुजारी द्वारा मंदिर के पट खोलते ही मंदिर की दहलीज पर पूजा-अर्चना कर जल व फूल चढ़े आज भी मिलते हैं, इस रहस्य को शोधकर्ताओं ने खोजने का प्रयास भी किया मगर शोधकर्ता आज भी इस रहस्य को समझ नहीं पाए।
भिंड से प्रदीप राजावत की रिपोर्ट।




