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हमारा जो ज्ञान है, वह कार्य है और जो स्वाध्याय है वह क्रिया है : विहसंत सागर

भिण्ड। गणाचार्य विराग सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मेडिटेशन गुरु उपाध्याय विहसंत सागर महाराज, मुनि विश्वसाम्य सागर महाराज रविवार की सुबह पचासा जैन मन्दिर से हलवाई खाना जैन मन्दिर पहुंचे।
यहां मेडिटेशन गुरू विहसंत सागर महाराज ने कहा कि हमारा जो सम्यज्ञान है वह कार्य है और जो स्वाध्याय करते हैं वह क्रिया हो गया और स्वाध्याय से क्या लाभ चाहते हैं सम्यग्दर्शन। इसलिए स्वाध्याय का कार्य क्या है सम्यग्दर्शन को उत्पन्न करना। व्यापार किस लिए करते हैं पैसे कमाने के लिए, स्वाध्याय किस लिए करते हैं सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति न हो तो स्वाध्याय करने से क्या लाभ। एक महिला सुई से कुछ सिलाई कर रही थी, सुबह से शाम तक सिलाई करती रही, मगर धागे में गांठ ही नहीं मारी थी, तो जब धागे को खींचा गया तो पूरा धागा बाहर आ गया, तो उसके सिलाई करने से क्या लाभ हुआ, कुछ नहीं। सारी मेहनत बेकार हो गई। इसी तरह से सुबह से शाम तक स्वाध्याय करते जाओ और समयग्दर्शन की प्राप्ति न हो तो स्वाध्याय करने से क्या लाभ। शास्त्र सुनना, पूजा करना, पाठ करना, स्वाध्याय करना ये सब सम्याग्दर्शन की प्राप्ति के लिए हैं।
मुनिराज ने कहा कि कुंद-कुंदी स्वामी यहां फिर कहते हैं कि हमारी आत्मा में आठ कर्म है- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, अंतराय, आयु, नाम और गोत्र। जैन दर्शन ने इन आठ कर्मों को माना है, इसीलिए आप पूजा करते समय बोलते हैं ‘जन्म, जरा मृत्यु विनाशनाय, अष्टा कर्म दहनाय’ यानि समयसार में जो है वही पूजा पाठ भी है। ये याद रखना पूजा पाठ अलग नहीं है। उन्होंने कहा कि आचार्य कहते हैं कि जो आठ कर्म हैं उनके गुण भी अलग-अलग हैं। ज्ञानावरणीय से ज्ञान पर आवरण पड़ता है। समस्त कर्म जड़ पुदगल हैं, जिनेन्द्र देव ने ऐसा कहा है कि ये पक कर उदय में आने के बाद दु:ख दे जाते हैं। ये दु:ख के निमित्त है इसी ने बंध किया था, इसी को भोगो। बिना देखे चले तो चोट लग गई, तो इसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार हैं।
कार्यक्रम के शुभारंभ में मुनिराज का पाद प्रक्षालन मन्दिर कमेठी महिला मण्डल ने किया। इस अवसर पर संजीव जैन बल्लू, अशोक जैन, सुभाष जैन, राजेश जैन, मनोज जैन, अशोक महामाया आदि महिला-पुरुष उपस्थित थे।

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