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प्रकृति का संरक्षण ही पृथ्वी का संरक्षण है : प्रो. इकबाल अली

सुप्रयास द्वारा विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित

भिण्ड। ‘क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, पंचतत्व मिल धरा शरीरा’ पांच तत्वों से मिल कर बने इस मनुष्य शरीर का संरक्षण भी तभी हो सकेगा जब इन पांचों तत्वों का संरक्षण होगा और यह पांचों तत्व जिन्हें पंचमहाभूत कहते हैं, यह प्रकृति के ही रूप हैं और वर्तमान में इनको संरक्षित करने की सबसे अधिक आवश्यकता हो गई है। यह उदगार पर्यावरणविद प्रो. इकबाल अली ने सामाजिक संस्था सुप्रयास द्वारा विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर विनोद पब्लिक स्कूल भिण्ड आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए।
इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य राजीव चौबे ने कहा कि विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रति वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है, इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों में प्राकृतिक पर्यावरण और उसके संसाधनों के महत्व के बारे में जागरुकता पैदा करना है। पृथ्वी ग्रह के समग्र संतुलन को बनाए रखने में जीवन प्राकृतिक संसाधनों से ही चलता है और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग ने संरक्षण के उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता बढ़ा दी है।
सुप्रयास के सचिव डॉ. मनोज जैन ने कहा कि अब प्रकृति संरक्षण की सर्वाधिक जिम्मेदारी नौनिहालों की हो गई है। क्योंकि आने वाला समय क्लाइमेट चेंज के लिए और भी अधिक खतरे वाला है, बच्चों को इसीलिए तत्काल जागरुक करना है, जिससे वह अपने प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो सकें। अब तक के मनुष्य ने प्रकृति का जो दोहन किया है, उसने इन बच्चों के लिए एक खतरनाक जीवन छोड दिया है। बेमौसम की सर्दी, गर्मी और बरसात के कारण प्रकृति का संतुलन इस प्रकार से बिगड गया है कि प्राकृतिक संसाधनों पर घोर संकट हमारे सामने खडा हो गया है। इसलिए नई पीढ़ी को इन खतरों के प्रति न केवल सचेत होने की आवश्यकता है, अपितु संवेदनशील होकर अपनी आदतों को इस प्रकार बनाएं कि हमारी अपनी ऊर्जा की जरूरतों का प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ कम से कम पडे।

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