होलिका दहन 6 या 7 मार्च को, जाने भागवताचार्य ने क्या कहा।

होलिका-दहन 6 को या 7 मार्च को इस संसार पर खास खबर।
जनक्रांति 24 डिजिटल न्यूज पर भागवताचार्य प्रदीप शास्त्री गोपाल जी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया चूंकि हम इस बावत् कुछ लिखना नहीं चाह रहे थे परन्तु कुछ हमारे ही अपने लोगों के बार-बार पूछने पर इस विषये लिखना मजबूरी हो गया। लोग कह रहे हैं कि कोई पंचांग 6 मार्च सोमवार को तो कोई पंचांग 7 मार्च मंगलवार को होलिका-दहन बता रहे हैं,तो फिर ऐसे में हम क्या करें.?
तो हम यहां पर स्पष्ट कर दें कि सभी के सभी पंचांग बिल्कुल सही कह रहे हैं। कमी है तो सिर्फ हमारे समझने की। ऐसा नहीं है कि पहले कभी ऐसा हुआ ही नहीं है, यकीन मानिए पहले भी ऐसी स्थितियां निर्मित होती रही हैं। हमारे भारतवर्ष में भिन्न-भिन्न प्रान्तों और नगरों के भिन्न-भिन्न अक्षांसीय भेद से पहले भी पंचांग निकाले जाते रहे हैं और आज भी निकाले जा रहे हैं और जहाँ जिस जिस क्षेत्र का पंचांग अपने गणितानुसार किसी भी त्योहार का निर्धारण करते थे, वही त्योहार शास्त्र सम्मत और हर्षोल्लास के साथ मना लिया जाता था परन्तु आज सामान्य जन को भ्रमित किया है तो सिर्फ और सिर्फ सोसल मीडिया ने।
सामान्य जन के दिमाग में तो सिर्फ यही बिठा दिया गया है कि जो तिथि सूर्योदयकालीन होती है, वही मनाई जाती है। यह बात बिल्कुल सही है परन्तु त्योहारों के लिए ये बात कदापि लागू नहीं होती। हमारे भारतीय त्योहारों को मनाने के लिए निर्णयसिंधु और धर्मसिंधु आदि धर्मशास्त्रों में कुछ सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं जिनके अनुसार कुछ त्योहार उदया, कुछ पूर्वाह्न, कुछ अपरान्ह तो कुछ प्रदोषकालीन तिथियों में मनाने के निर्देश दिए गए हैं।
ध्यान दें :- यह लेख हम किसी को भ्रमित करने के लिए कदापि नहीं लिख रहे हैं। होलिका-दहन के लिए जो शास्त्रोक्त नियम हैं वे ही हम यहां सरल भाषा में बताते हैं :-
१- होलिका दहन हमेशा प्रदोषव्यापिनी पूर्णिमा में ही किया जाता है।
२- होलिका दहन कभी भी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में नहीं किया जाता है।
३- यदि पूर्णिमा तिथि दो दिन हो (जैसा कि इस वर्ष है।) तो दूसरे दिन ही होलिका दहन किया जाना चाहिए वशर्ते सूर्यास्त के समय पूर्णिमा मौजूद हो। (ऐसा भारत के अधिकांश क्षेत्रों में 7 मार्च को नहीं है।)
४- यदि भद्रा का साया होलिका दहन के समय हो तो भद्रा का मुख त्याग कर भद्रा पुच्छ में होलिका दहन कर देना चाहिए, परन्तु पहले दिन यानि 6 मार्च को भद्रा का मुख व पुच्छ काल (लगभग 2 बजे के बाद) दोनों ही अर्धरात्रि के ही उपरान्त आ रहे हैं ,और अर्धरात्रि के उपरांत होलिकादहन करना निषेध है। तब तो सभी शास्त्र भद्रा काल के समय में प्रदोष वेला में ही होलिकादहन करने का पुरजोर समर्थन करते हैं। (यह समय होगा 6 मार्च को सांय 6: 28 से रात्रि 9:14 बजे तक)
अतः इन बिंदुओं से स्पष्ट होता है कि भारत के पूर्वी प्रदेशों (पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पूर्वी मध्यप्रदेश, पूर्वी छत्तीसगढ़ आदि) में होलिकादहन 7 मार्च को जबकि सम्पूर्ण उत्तर पश्चिमी भारत (पंजाब, महाराष्ट्र, जम्मू, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान आदि) में होलिका दहन 6 मार्च को निसंकोच कर सकते हैं।
इसे और भी सरल भाषा में परिभाषित करें तो जिन प्रदेशों, नगरों, कस्बों या गांवों में सूर्यास्त सांय 6:10 बजे के पहले हो जाएगा उन स्थानों पर होलिका दहन 7 मार्च को होगा और जिन क्षेत्रों में सूर्यास्त 6:10 (सांय) के बाद होगा वहाँ 6 मार्च को ही (इसमें भिण्ड, मुरैना और ग्वालियर आदि भी शामिल हैं।) होलिकादहन निःसंदेह करें।(यह बात हमने अपने ही Comment में मानचित्र के द्वारा समझाया है।)
एक बार हम पुनः बता दें कि कि यहां पर हमने जो भी लिखा है, शास्त्र सम्मत ही लिखा है यदि आप सहमत हैं तो ठीक और नहीं है तो कोई बात नहीं। जैसा ठान लिया है वैसा ही करें, आप स्वतंत्र है। तर्क-कुतर्क और वितर्क करने की आवश्यकता नहीं है।
आप सभी को हमारी ओर से होलिकोत्सव की अग्रिम शुभकामनाएं और बधाइयां।
जय जय श्री राम
पं. प्रदीप शास्त्री गोपाल जी
थरा वाले।




