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बदल रहा है भगोरिया का सांस्कृतिक स्वरूप इसके संरक्षण की जरूरत है- डॉ. मनोज जैन।

बदल रहा है भगोरिया का सांस्कृतिक स्वरूप इसके संरक्षण की जरूरत है- डॉ. मनोज जैन।

भगोरिया मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में, खासकर झाबुआ, अलीराजपुर और पूर्वी तथा पश्चिमी निमाड़ में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण लोक संस्कृति का पर्व है जो प्रेम, जीवन और संगीत का प्रतीक है। यह पर्व मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय की संस्कृति का एक जीवंत और रंगीन प्रदर्शन है, जो उनके पारंपरिक रीति-रिवाजों और कला को दर्शाता है। परंतु बदलते परिवेश का असर हमारे आदिवासी समाज पर भी तेजी से पड़ा है, और यही कारण है कि भगोरिया का पारंपरिक स्वरूप अब तेजी से परिवर्तित हो रहा है। इसके संरक्षण की आवश्यकता है। सुप्रयास का प्रयास रहेगा कि आगामी समय में आदिवासी संस्कृति के पारंपरिक स्वरूप के लिए प्रोत्साहित करने वाले जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। उक्त उद्गार सुप्रयास के सचिव डॉ मनोज जैन ने उदयनगर में आयोजित भगोरिया उत्सव में व्यक्त किए।
सुप्रयास द्वारा इस अवसर पर लोक संस्कृति के संरक्षण हेतु जन जागृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।

डॉ मनोज जैन ने बताया कि भगोरिया युवाओं के लिए जीवन साथी चुनने का एक विशेष अवसर होता है, जहाँ वे पारंपरिक संगीत, नृत्य और मिलन के माध्यम से एक-दूसरे के करीब आते हैं। भगोरिया हाट, जिसे सामूहिक स्वयंवर या विवाह बाजार के रूप में भी जाना जाता है, युवाओं को एक-दूसरे को पसंद करने और प्रेम संबंध स्थापित करने का एक अवसर प्रदान करता है।
इसके अलावा यह पर्व फसल कटाई के बाद होने वाले उत्सव का प्रतीक है, जो आदिवासी समुदाय के जीवन में कृषि के महत्व को दर्शाता है। भगोरिया के दौरान आदिवासी युवक-युवतियाँ पारंपरिक वेशभूषा में सजते हैं और ढोल, मांदल और बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं।
भगोरिया आदिवासी समुदाय को अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। भगोरिया का आयोजन होली से कुछ दिन पहले होता है, जो होली के रंगमंच से पहले आदिवासी समुदाय के मिलन और उत्सव का एक शानदार अवसर प्रदान करता है। भगोरिया हाट एक ऐसा बाजार है जहाँ युवा लोग जीवन साथी चुनने जाते हैं। यहां विभिन्न प्रकार के सामान बेचे जाते हैं और लोग खरीदारी के साथ-साथ मनोरंजन का भी आनंद लेते हैं। भगोरिया, आदिवासी समुदाय के लोगों को एक साथ आने, सामाजिक संबंध बनाने और अपनी संस्कृति का जश्न मनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह पश्चिमी निमाड़, झाबुआ, आलीराजपुर और बड़वानी में मनाए जाने वाले लोक संस्कृति का पर्व है और इस दौरान ग्रामीण अपनी ज़िंदगी को खुलकर जीते हैं।

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